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Famous Ghat in Patna: ये हैं पटना के सबसे खूबसूरत गंगा घाट, हर एक की अपनी अलग कहानी और विशेषता

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गांधी घाट- पटना स्थित एनआईटी के पीछे गांधी घाट या इसे एनआईटी घाट से भी जाना जाता है. सबसे ज्यादा भीड़ यहीं होती है. यहां लोग गंगा आरती देख सकते हैं, बोट की सवारी कर सकते हैं और लजीज व्यंजनों का स्वाद भी चख सकते हैं. यह घाट बाकी सभी घाटों से ज्यादा विकसित है. यहां से एमवी गंगा विहार पर बैठकर सैर भी कर सकते हैं. गांधी घाट का मुख्य आकर्षण शाम की गंगा आरती है, जो शाम 6 से 6:30 बजे तक होती है. (सच्चिदानंद/पटना)

दीघा घाट- यह पटना का दूसरा भीड़ भाड़ और सुंदरता से भरपूर घाट है. दीघा घाट पर शांति, गंगा की लहरें और सूर्यास्त का संगम देखने को मिल सकता है. सेहत के प्रति सचेत रहने वाले लोग भी सुबह और शाम को टहलने, दौड़ने और व्यायाम करने के लिए आ सकते हैं. इसके अलावा इस घाट पर आप नौका विहार भी कर सकते है. पटना में सबसे खूबसूरत सूर्यास्त का नजारा दीघा घाट पर देखा जा सकता है. कृष्णा घाट- यह पटना में गंगा नदी के किनारे पर सबसे लंबा घाट है, जिसकी लंबाई करीब 119.5 मीटर है. यह इलाका अफजलपुर मोहल्ले का हिस्सा था और नदी के किनारे का बाजार बादशाहीगंज, कृष्णा घाट से लेकर गांधी घाट तक फैला हुआ था. इसी स्थान पर मेजर कार्नेक की अगुवाई वाली अंग्रेज सेना और शुजा-उद-दौलाह और मीर कासिम शाह आलम द्वितीय के सयुंक्त फौजों के बीच 3 मई 1764 को प्रसिद्ध पटना संग्राम हुआ था. पास ही में पटना विश्वविद्यालय परिसर स्थित है. अदालतगंज घाट- इस घाट के पास पटना जिला न्यायालय परिसर एवं जगन्नाथ मंदिर है. न्यायालय परिसर सन 1757 के कंपनी बाग सेनावास का हिस्सा है, जिसे कालांतर में सन 1765 से 1767-68 में बांकीपुर छावनी में उन्नत किया गया था. इस घाट की लंबाई लगभग 60 मीटर है. यहां सूर्यास्त देखने में आनन्द आता है. यहां लोगों के बैठने के लिए आकर्षक चबूतरे बनाए गए हैं. बांस घाट- पटना का यह घाट उन घाटों में शामिल है, जिसे मोक्ष का घाट कहा जाता है. दुजरा के समीप गंगा किनारे बांस के काफी पौधे होने के कारण इस घाट का नाम बांसघाट पड़ा. यह शमशान घाट भी है, जहां देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद की समाधि भी है. इस घाट पर स्थित काली मंदिर की स्थापना लगभग 300 साल पहले श्मशान घाट पर अघोर पंथ के तांत्रिकों ने की थी. मंदिर के न्यास ट्रस्ट के सचिव शैलेन्द्र श्रीवास्तव ने बताया कि यहां पर दो महिलाएं सती हुई थीं, इसलिए इस स्थल का नाम दो-जरा पड़ा था, जो अब दुजरा बोला जाता है.

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